काबुल: हिन्दुस्तान को परंपरागत रूप से सूखे मेवे और कालीन की आपूर्ति करने वाला अफगानिस्तान ‘काबुली वाला’ पाकिस्तान की कारस्तानियों से तंग आकर ईरान के जरिए भारत पहुंचने की तैयारी कर रहा है। अफगानिस्तान के वाणिज्य मंत्रालय के प्रवक्ता वहीदुल्ला गाजीखेल ने बताया कि अफगानिस्तान ने ईरान के साथ बंदरगाह इस्तेमाल करने का समझौता किया है।
अफगानिस्तान इसी बंदरगाह के रास्ते भारत और अन्य देशों को सूखे मेव, फल और निर्यात करेगा। अफगानिस्तान को उम्मीद है कि ईरान के साथ उसके बंदरगाह को इस्तेमाल करने का समझौता होने से पड़ोसी देश पाकिस्तान पर वह कम निर्भर रहेगा और साथ ही यूरोपीय देशों तथा भारत में निर्यात को बढावा मिलेगा। अफगानिस्तान अनार जैसे ताजा फल, सूखे मेवे, केसर और कालीन निर्यात करता है। प्राचीन समय भारत सूखे मेवे, फल और कालीन के लिए अफगानिस्तान का प्रमुख बाजार रहा है।
भारत में अफगानिस्तानी व्यापारी गली कूचों में सूखे मेवे और कालीन बेचते देखे जा सकते है। अफगानी व्यापारियों से ही प्रभावित होकर नोबेल पुरस्कार विजेता गुरवार रविंद्र नाथ टैगोर ने ऐतिहासिक ‘काबुली वाला’ कहानी लिखी थी। गाजी खेल ने बताया कि अफगानिस्तान मध्य एशिया और यूरोप को निर्यात करना चाहता है और भारत इसी बंदरगाह के रास्ते अफगानिस्तान को अपना निर्यात करना चाहता है।
फिलहाल अफगानिस्तान समुद्री रास्ते से किए जाने वाले निर्यात के लिए पाकिस्तान के कराची बंदरगाह पर निर्भर है।
पाकिस्तान के रास्ते का इस्तेमाल करने से व्यापारियों को खासी मुश्किलें उठानी पड़ रही हैं। हाल के वर्षों में पाकिस्तान ने कम से कम दो बार अफगानिस्तान से लगी अपनी सीमा बंद की है जिससे अफगानिस्तान में तैनात नाटो सैनिकों की आपूर्ति में भी बाधा पहुंची। गाजीखेल ने बताया कि जब जब पाकिस्तान का रिश्ता अमेरिका से खराब होता है तो इसका खामियाजा अफगानी व्यापारियों को भुगतना पड़ता है।
उन्होंने बताया कि अफगानिस्तान ने यह समझौता पाकिस्तान के असहयोगात्मक रवैया के कारण किया है। अभी हाल ही में अफगान पाक सीमा पर निजी ट्रांसपोर्टर कंपनियों को अफगानिस्तान का माल लेकर कराची जाने की मनाही थी जिसकी वजह से खेप तीन महीने की देर से निर्धारित जगह पहुंची। इस खेप में दूध, अंडे जैसे सामान भी थे जो तब तक खराब हो गए और इसके अलावा कंपनियों को अपनी खेप गोदाम में रखने के लिए एक करोड डालर का किराया भी देना पड़ा।